27 सितंबर 2008

याद आता है मुझको....

एक समय जब याद आता है मुझको
मैं तेरी घनी, घटा सी जुल्फों से खेलता था
तू लजाती, शर्माती और झिझकती थी
तेरे होठों का गुलाब, तबस्सुम का दरिया था
आँखें - शांत झील की गहराई थीं
प्यार तेरा मादकता का छलकता जाम था
और अब वो यादें एक नासूर बन गयी हैं
ज़िन्दगी ग़मों का एक दरिया है
जिसमें डूबता - उतराता हूँ मैं
सोच कर तेरी बेवफाई,
दिन-रात दिल जलाता हूँ मैं

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